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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 गृह विज्ञान

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :200
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2782
आईएसबीएन :0

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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 गृह विज्ञान - सरल प्रश्नोत्तर

अध्याय - 3 chauhan

रंगाई

(Dyeing)

प्रश्न- रंगाई से आप क्या समझतीं हैं? रंगों के प्राकृतिक वर्गीकरण को संक्षेप में समझाइए एवं विभिन्न तन्तुओं हेतु उनकी उपयोगिता का वर्णन कीजिए।

अथवा
वस्त्रोद्योग में रंगाई का क्या महत्व है? रंगों की प्राप्ति के साधन और रंगों के प्रकार का वर्णन कीजिए।

उत्तर -

प्राचीन समय से वर्तमान समय में, रंगाई की कला ने विश्व में सौन्दर्य प्रदान करने में बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। भारत देश रंगों के क्षेत्र में प्राचीन विश्व में महत्वपूर्ण स्थान रखता था। यहाँ के लोगों को प्राचीन समय से ही प्राकृतिक रंगों का ज्ञान है। इण्डिगों, नीले रंग का राजा माना जाता है। सेफलॉवर, लॉक, मदार और सन्डलवुड लाल रंग प्रदान करते हैं। भूरे रंग के लिए कच्छ, पीले रंग के लिए सेफ्रॉन इसके अलावा और भी कई प्राकृतिक रंगों के क्षेत्र में भारत देश का प्रभुत्व और एकाधिकार था। रंगों का उपयोग न केवल वस्त्रों को आकर्षण बनाने हेतु किया जाता था बल्कि ये पश्चिमी देशों को भी बड़ी मात्रा में वास्कोडिगामा द्वारा खोजे गये समुद्री मार्ग से उपलब्ध कराये जाते थे।

आत्मा की शान्ति हेतु प्राचीन समय में रंगों की आवश्यकता को अत्यधिक महत्वपूर्ण माना जाता था। जिस तरह भौतिक आवश्यकताओं हेतु भोजन की, प्रत्येक रंग का अपना महत्व होता है, जैसे- नीला रंग जीवन का प्रतीक और आकर्षक भविष्य की ओर इंगित करता था। इसी तरह से लाल रंग खुशी, उल्लास, सत्य, जीवन और गम्भीरता को दर्शाता था साथ ही ये रंग दुल्हन के सौभाग्य का प्रतीक माना जाता था, प्रत्येक ऋतु के अपने स्वयं के रंग होते हैं, जैसे- नींबू हरा रंग प्रारम्भिक ग्रीष्म ऋतु का रंग है, केसरिया बसन्त ऋतु का रंग है। वर्तमान समय में भी बसन्त ऋतु के आने पर प्रत्येक लड़की अपनी साड़ी और दुपट्टे को पीले रंग में रंगती हैं। प्राचीन समय में मनुष्यों के अनुसार पीला रंग सूर्य प्रकाश का प्रतीक है। राजपुताना में दोहरी रंगाई की तकनीक से वस्त्र के दोनों ओर विभिन्न रंग अपना विशिष्ट प्रभाव उत्पन्न करते हैं, प्रत्येक विभिन्न रंगीन नमूने के विभिन्न कलात्मक नाम होते हैं, जैसे- गहरे बादलों के रंग को साड़ी का मेघाम्बर, अगि ज्वाला के रंग की साड़ी का रंग अगि पर, मोर के पंखों के विभिन्न रंगों के वस्त्र का नाम मयूर पंख, चमकते हुए तारे के समान रंग के वस्त्रों का नाम आसमान तारा' होता था। आधुनिक समय में भी 'छिपास' या छिप्पी या छपाई करने वाले लोग गाँवों से अपनी पुरानी प्रक्रिया ही अपनाते हैं, जबकि अधिकतर संश्लिष्ट रंगों का उपयोग किया जाता है। पहाड़ी जनजाति के रंगरेज रंगाई के कुछ गुप्त रहस्य छिपाये रहते हैं और वे जड़ी-बूटी, पेड़ों की पत्तियों एवं जड़ों से आश्चर्यजनक रंगों को तैयार करते हैं।

रंगों का वर्गीकरण एवं तन्तुओं हेतु उनकी उपयोगिता

वस्त्रों को आकर्षक बनाने की परिसज्जा हेतु स्थाई या अस्थाई रूप से वस्त्रों को रंगा जाता है। रंगने के लिए जिस पदार्थ की आवश्यकता होती है उसे रंग कहते हैं और जिस प्रक्रिया द्वारा इस क्रिया को सम्पन्न किया जाता है उसे रंगाई कहते हैं, जो रंग रंगाई के काम लाये जाते हैं वेमुख्यतः दो प्रकार के होते हैं -
(i) रंग (dyes),
(ii) वर्णक रंग घुलनशील प्रकृति के होते हैं।

वस्त्रों को रासायनिक प्रक्रिया तथा ताप इत्यादि की सहायता से रंगा जा सकता है। विभिन्न प्रकार के तन्तुओं में रंगों के प्रति सादृश्यता भी विभिन्न प्रकार की होती है।

वर्णकों के गुण अपारदर्शी होते हैं। ये अघुलनशील होते हैं। तन्तु वर्णक रासायनिक प्रक्रिया इत्यादि के द्वारा अपने में आत्मसात नहीं करते, इसलिए वर्णकों को यांत्रिक प्रक्रिया द्वारा राल इत्यादि चिपकने वाले पदार्थों द्वारा चढ़ाया जाता है। वर्णकों पर धूप, पसीने इत्यादि के प्रभाव से रंग उडने की प्रक्रिया विभिन्न प्रकार की होती है। वस्त्रों पर वर्णकों का प्रयोग शीघ्रता और : सरलता से हो सकता है। प्राप्ति के आधार पर रंगों को दो भागों में वर्गीकृत किया जा सकता है

1. प्राकृतिक रंग,
2. संश्लेषणात्मक अथवा कृत्रिम रंग।

1. प्राकृतिक रंग - प्राकृतिक स्रोतों से प्राप्त रंगों को प्राकृतिक रंग कहते हैं। इन्हें भी स्रोतों के आधार पर तीन भागों में विभाजित किया जा सकता है -

(i) वानस्पतिक प्राकृतिक रंग - प्राचीन समय में भी लोग वृक्ष की जड़ों, छाल, पत्तियों और फल-फूल इत्यादि को रंगाई के लिए उपयोग में लाता था। यूरोप में भी कई प्रकार के वृक्षों से रंग प्राप्त किये जाते थे, जैसे- होमाटीजोलन कोम्पैकनम नामक वृक्ष जो कि दक्षिणी अमेरिका और वेस्टइण्डीज में पाया जाता था। इस वृक्ष की लकड़ी के छोटे टुकड़ों को पानी में भिगो दिया जाता था जिससे खमीरीकरण की क्रिया द्वारा काला रंग तैयार होता था। इस तरह भारत और विश्व के कई अन्य देशों में हजारों वर्षों से इन रंगों का प्रयोग मनुष्य द्वारा किया जा रहा है। भारत और मिस्र में नील के पौधे का प्रयोग रंगाई के लिए प्रचीन समय में किया जाता था और वर्तमान समय में भी इनका उपयोग किया जाता है। ऐलीजेरीएन नामक वानस्पतिक रंग जो कि टर्की में बहुत अधिक मात्रा में पाया जाता है। यह रंग पेड़ की जड़ों को सुखाकर और पीसकर बनाया जाता है। इसी तरह से मदार नामक घास का उपयोग बेल्जियम, फ्राँस इत्यादि देशों में रंग को प्राप्त करने के लिए किया जाता है। वानस्पतिक रंगों के निम्न उदाहरण हैं- इण्डिगों, टेसू अथवा कत्था या नील, हिना या मेंहदी, हल्दी या टरमेरिक, अखरोट या वालनट, हरड़, बहेड़ा, बस्मा, ऑवला, जामुन, कीकर तथा हरश्रृंगार।

(ii) प्राणिज प्राकृतिक रंग - जन्तु जगत से जो रंग प्राप्त किये जाते हैं उन्हें 'प्राणिज रंग' कहते हैं। प्राचीन समय में ही कई तरह के कीट-पतंगों को मारकर विभिन्न प्रकार के रंग प्राप्त किया जाते थे। जामुनी रंग को भूमध्य सागर में एक विशेष प्रकार की मछली से प्राप्त किया जाता था। यह बहुत ही महँगा होता था, क्योंकि कई हजारों की संख्या में मछलियों के मारने से थोड़ा सा रंग प्राप्त होता था। कैक्टस जाति के कोकस केक्टी नामक मादा कीड़ें से मैक्सिकों में कोकनीएल रंग प्राप्त किया जाता था। बाद में विश्व के अन्य देशों में इस तरह के प्राणिज रंगों को प्राप्त किया जाने लगा। इन सभी कीड़ों से रंग बनाने के लिए पहले असंख्य कीड़ों को मारा जाता है फिर इनको गर्म भाप दी जाती है, इससे जो रस निकलता है, उससे कई तरह के रंग बनाये जाते हैं और ऊनी एवं रेशमी वस्त्रों को रंगने हेतु इनको उपयोग में लाया जाता है। प्राणिज प्राकृतिक रंगों के उदाहरण निम्न हैं- क्रिमसन, स्कारलेट तथा नारंगी। इन सभी रंगों के महँगे होने और वर्तमान समय में कोलतार रंगों का बहुतायत में प्रयोग होने के कारण इन रंगों की माँग कम हो गई है।

(iii) खनिज प्राकृतिक रंग - इन रंगों को प्रकृति के खनिज पदार्थों से प्राप्त होने के कारण इन्हें खनिज रंग कहा जाने लगा। लोहे की धातु में आर्द्र अवस्था में जंग लग जाता है, यही सिद्धान्त खनिज रंगों की प्राप्ति हेतु उपयोग में लाया जाता है। लोहे के छोटे-छोटे टुकड़ों को पानी तथा सिरके में भिगो दिया जाता है। कुछ दिनों तक भीगा रहने पर इसमें ऑक्सीजन (O2) की प्रतिक्रिया होती हैं, जिससे यह भूरे रंग का हो जाता है तथा इससे चमकीला पीला रंग प्राप्त होता है। खनिज रंगों के उदाहरण निम्न हैं- क्रोम नारंगी, क्रोम हरा, क्रोम पीला तथा भूरा रंग इत्यादि। भारत में उपयोग में लाये जाने वाले कुछ मुख्य प्राकृतिक रंग और विभिन्न तन्तुओं हेतु इनकी उपयोगिता निम्न प्रकार है-

हिना या मेंहदी - हिना या मेंहदी की पत्तियों का उपयोग भारत में बहुत प्राचीन समय से नव वधुओं के श्रृंगार हेतु किया जाता है। इसके साथ ही इसे वस्त्रों में रंगने हेतु भी उपयोग में लाया जाता है। मेंहदी पत्तियों से प्राप्त रंग मध्यम रूप से पक्का होता है और धुलाई, क्लोरीन, विरंजन एवं प्रकाश के प्रति पक्का होता है। इसका मुख्य लाभ यह है कि यह मितव्ययी रंग होता है। इसके रंग का घोल प्राप्त करने के लिए मेंहदी की पत्तियों को पीसकर पानी में भिगों दिया जाता है, इसके पश्चात् इसे भीने वस्त्र में छान लिया जाता है। इस घोल में थोड़ी मात्रा में तनु एसीटिक अम्ल मिलाया जाता है और मिश्रण को गर्म किया जाता है, इस प्रक्रिया में लाल-भूरे रंग से पीले रंग के शेड प्राप्त किये जा सकते हैं।

कत्था या कच्छ - यह भारत में उत्तर प्रदेश, नागपुर तथा मुम्बई इत्यादि क्षेत्रों में पाया जाता है। इससे लाल, भूरा, गहरा भूरा, गहरा लाल, हल्का गुलाबी इत्यादि शेड प्राप्त किये जाते हैं। ये शेड साबुन, पसीने और प्रकाश के प्रति पक्के होते हैं। इन रंगों का उपयोग रेशमी, सूती तथा ऊनी वस्त्रों पर किया जाता है।

नील या इण्डिगो - यह भारत में तमिलनाडु, असम तथा बिहार में पाया जाता है। इससे नीले, पीले और नीले हरे रंग के शेड प्राप्त किये जाते हैं। इसके नीले शेड धुलाई, पसीने तथा प्रकाश के प्रति पक्के होते हैं, जबकि हरे शेड पक्के नहीं होते हैं। इनका उपयोग सूती और ऊनी वस्त्रों हेतु किया जाता है।

टेसू - यह अधिकांशतः उत्तर प्रदेश और बिहार में पाया जाता है। इसके अलावा यह भारत के अन्य भागों में भी पाया जाता है। इससे चमकदार नारंगी और चमकदार पीले शेड प्राप्त होते हैं। यद्यपि ये पक्के रंग नहीं होते तब भी इनका उपयोग ऊनी, रेशमी तथा सूती वस्त्रों की रंगाई हेतु किया जाता है।

मजीठ - यह रंग सिक्किम और असम में पाया जाता है। इससे गुलाबी, लाल, मेरून, लाल भूरा, लाल नारंगी और ईट के रंग के शेड प्राप्त किये जाते हैं। इनका उपयोग सूती और ऊनी वस्त्रों की रंगाई हेतु किया जाता है।

अखरोट या वॉलनट रीन्ड - यह हिमाँचल, कश्मीर तथा अल्मोड़ा के पहाड़ी क्षेत्रों में मिलता है। इसके चमकदार लाल भूरे और पीले रंग शेड प्राप्त होते हैं। यह धुलाई के प्रति बहुत पक्का होता है। इसका उपयोग ऊनी तथा रेशमी वस्त्रों हेतु किया जाता है।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- विभिन्न प्रकार की बुनाइयों को विस्तार से समझाइए।
  2. प्रश्न- निम्नलिखित पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए। 1. स्वीवेल बुनाई, 2. लीनो बुनाई।
  3. प्रश्न- वस्त्रों पर परिसज्जा एवं परिष्कृति से आप क्या समझती हैं? वस्त्रों पर परिसज्जा देना क्यों अनिवार्य है?
  4. प्रश्न- वस्त्रों पर परिष्कृति एवं परिसज्जा देने के ध्येय क्या हैं?
  5. प्रश्न- निम्नलिखित पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए। (1) मरसीकरण (Mercercizing) (2) जल भेद्य (Water Proofing) (3) अज्वलनशील परिसज्जा (Fire Proofing) (4) एंटी-सेप्टिक परिसज्जा (Anti-septic Finish)
  6. प्रश्न- परिसज्जा-विधियों की जानकारी से क्या लाभ है?
  7. प्रश्न- विरंजन या ब्लीचिंग को विस्तापूर्वक समझाइये।
  8. प्रश्न- वस्त्रों की परिसज्जा (Finishing of Fabrics) का वर्गीकरण कीजिए।
  9. प्रश्न- कैलेण्डरिंग एवं टेण्टरिंग परिसज्जा से आप क्या समझते हैं?
  10. प्रश्न- सिंजिइंग पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  11. प्रश्न- साइजिंग को समझाइये।
  12. प्रश्न- नेपिंग या रोयें उठाना पर टिप्पणी लिखिए।
  13. प्रश्न- निम्नलिखित पर टिप्पणी लिखिए - i सेनफोराइजिंग व नक्काशी करना।
  14. प्रश्न- रसॉयल रिलीज फिनिश का सामान्य परिचय दीजिए।
  15. प्रश्न- परिसज्जा के आधार पर कपड़े कितने प्रकार के होते हैं?
  16. प्रश्न- कार्य के आधार पर परिसज्जा का वर्गीकरण कीजिए।
  17. प्रश्न- स्थायित्व के आधार पर परिसज्जा का वर्गीकरण कीजिए।
  18. प्रश्न- वस्त्रों की परिसज्जा (Finishing of Fabric) किसे कहते हैं? परिभाषित कीजिए।
  19. प्रश्न- स्काउअरिंग (Scouring) या स्वच्छ करना क्या होता है? संक्षिप्त में समझाइए |
  20. प्रश्न- कार्यात्मक परिसज्जा (Functional Finishes) किससे कहते हैं? संक्षिप्त में समझाइए।
  21. प्रश्न- रंगाई से आप क्या समझतीं हैं? रंगों के प्राकृतिक वर्गीकरण को संक्षेप में समझाइए एवं विभिन्न तन्तुओं हेतु उनकी उपयोगिता का वर्णन कीजिए।
  22. प्रश्न- वस्त्रोद्योग में रंगाई का क्या महत्व है? रंगों की प्राप्ति के विभिन्न स्रोतों का वर्णन कीजिए।
  23. प्रश्न- रंगने की विभिन्न प्रावस्थाओं का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
  24. प्रश्न- कपड़ों की घरेलू रंगाई की विधि की व्याख्या करें।
  25. प्रश्न- वस्त्रों की परिसज्जा रंगों द्वारा कैसे की जाती है? बांधकर रंगाई विधि का विस्तार से वर्णन कीजिए।
  26. प्रश्न- बाटिक रंगने की कौन-सी विधि है। इसे विस्तारपूर्वक लिखिए।
  27. प्रश्न- वस्त्र रंगाई की विभिन्न अवस्थाएँ कौन-कौन सी हैं? विस्तार से समझाइए।
  28. प्रश्न- वस्त्रों की रंगाई के समय किन-किन बातों का ध्यान रखना चाहिए?
  29. प्रश्न- डाइरेक्ट रंग क्या हैं?
  30. प्रश्न- एजोइक रंग से आप क्या समझते हैं?
  31. प्रश्न- रंगाई के सिद्धान्त से आप क्या समझते हैं? संक्षिप्त में इसका वर्णन कीजिए।
  32. प्रश्न- प्राकृतिक डाई (Natural Dye) के लाभ तथा हानियाँ क्या-क्या होती हैं?
  33. प्रश्न- प्राकृतिक रंग (Natural Dyes) किसे कहते हैं?
  34. प्रश्न- प्राकृतिक डाई (Natural Dyes) के क्या-क्या उपयोग होते हैं?
  35. प्रश्न- छपाई की विभिन्न विधियों का वर्णन कीजिए।
  36. प्रश्न- इंकजेट (Inkjet) और डिजिटल (Digital) प्रिंटिंग क्या होती है? विस्तार से समझाइए?
  37. प्रश्न- डिजिटल प्रिंटिंग (Digital Printing) के क्या-क्या लाभ होते हैं?
  38. प्रश्न- रंगाई के बाद (After treatment of dye) वस्त्रों के रंग की जाँच किस प्रकार से की जाती है?
  39. प्रश्न- स्क्रीन प्रिटिंग के लाभ व हानियों का वर्णन कीजिए।
  40. प्रश्न- स्टेन्सिल छपाई का क्या आशय है। स्टेन्सिल छपाई के लाभ व हानियों का वर्णन कीजिए।
  41. प्रश्न- पॉलीक्रोमैटिक रंगाई प्रक्रिया के बारे में संक्षेप में बताइए।
  42. प्रश्न- ट्रांसफर प्रिंटिंग किसे कहते हैं? संक्षिप्त में समझाइए।
  43. प्रश्न- पॉलीक्रोमैटिक छपाई (Polychromatic Printing) क्या होती है? संक्षिप्त में समझाइए।
  44. प्रश्न- भारत की परम्परागत कढ़ाई कला के इतिहास पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
  45. प्रश्न- सिंध, कच्छ, काठियावाड़ और उत्तर प्रदेश की चिकन कढ़ाई पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
  46. प्रश्न- कर्नाटक की 'कसूती' कढ़ाई पर विस्तार से प्रकाश डालिए।
  47. प्रश्न- पंजाब की फुलकारी कशीदाकारी एवं बाग पर संक्षिप्त लेख लिखिए।
  48. प्रश्न- टिप्पणी लिखिए : (i) बंगाल की कांथा कढ़ाई (ii) कश्मीर की कशीदाकारी।
  49. प्रश्न- कच्छ, काठियावाड़ की कढ़ाई की क्या-क्या विशेषताएँ हैं? समझाइए।
  50. प्रश्न- कसूती कढ़ाई का विस्तृत रूप से उल्लेख करिए।
  51. प्रश्न- सांगानेरी (Sanganeri) छपाई का विस्तृत रूप से विवरण दीजिए।
  52. प्रश्न- कलमकारी' छपाई का विस्तृत रूप से वर्णन करिए।
  53. प्रश्न- मधुबनी चित्रकारी के प्रकार, इतिहास तथा इसकी विशेषताओं के बारे में बताईए।
  54. प्रश्न- उत्तर प्रदेश की चिकन कढ़ाई का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
  55. प्रश्न- जरदोजी कढ़ाई का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  56. प्रश्न- इकत शब्द का अर्थ, प्रकार तथा उपयोगिता बताइए।
  57. प्रश्न- पोचमपल्ली पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  58. प्रश्न- बगरू (Bagru) छपाई का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  59. प्रश्न- कश्मीरी कालीन का संक्षिप्त रूप से परिचय दीजिए।
  60. प्रश्न- भारत के परम्परागत वस्त्रों पर संक्षिप्त में एक टिप्पणी लिखिए।
  61. प्रश्न- भारत के परम्परागत वस्त्रों का उनकी कला तथा स्थानों के संदर्भ में वर्णन कीजिए।
  62. प्रश्न- चन्देरी साड़ी का इतिहास व इसको बनाने की तकनीक बताइए।
  63. प्रश्न- हैदराबाद, बनारस और गुजरात के ब्रोकेड वस्त्रों की विवेचना कीजिए।
  64. प्रश्न- बाँधनी (टाई एण्ड डाई) का इतिहास, महत्व बताइए।
  65. प्रश्न- टाई एण्ड डाई को विस्तार से समझाइए |
  66. प्रश्न- कढ़ाई कला के लिए प्रसिद्ध नगरों का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
  67. प्रश्न- पटोला वस्त्रों का निर्माण भारत के किन प्रदेशों में किया जाता है? पटोला वस्त्र निर्माण की तकनीक समझाइए।
  68. प्रश्न- औरंगाबाद के ब्रोकेड वस्त्रों पर टिप्पणी लिखिए।
  69. प्रश्न- गुजरात के प्रसिद्ध 'पटोला' वस्त्र पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  70. प्रश्न- पुरुषों के वस्त्र खरीदते समय आप किन बातों का ध्यान रखेंगी? विस्तार से समझाइए।
  71. प्रश्न- वस्त्रों के चुनाव को प्रभावित करने वाले तत्वों का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
  72. प्रश्न- फैशन के आधार पर वस्त्रों के चुनाव को समझाइये।
  73. प्रश्न- परदे, ड्रेपरी एवं अपहोल्स्ट्री के वस्त्र चयन को बताइए।
  74. प्रश्न- वस्त्र निर्माण में काम आने वाले रेशों का चयन करते समय किन-किन बातों का ध्यान रखना चाहिए?
  75. प्रश्न- रेडीमेड (Readymade) कपड़ों के चुनाव में किन-किन बातों का ध्यान रखना चाहिए?
  76. प्रश्न- अपहोल्सटरी के वस्त्रों का चुनाव करते समय किन-किन बातों का ध्यान रखना चाहिए?
  77. प्रश्न- गृहोपयोगी लिनन (Household linen) का चुनाव करते समय किन-किन बातों का विशेष ध्यान रखने की आवश्यकता पड़ती है?
  78. प्रश्न- व्यवसाय के आधार पर वस्त्रों के चयन को स्पष्ट कीजिए।
  79. प्रश्न- सूती वस्त्र गर्मी के मौसम के लिए सबसे उपयुक्त क्यों होते हैं? व्याख्या कीजिए।
  80. प्रश्न- अवसर के अनुकूल वस्त्रों का चयन किस प्रकार करते हैं?
  81. प्रश्न- मौसम के अनुसार वस्त्रों का चुनाव किस प्रकार करते हैं?
  82. प्रश्न- वस्त्रों का प्रयोजन ही वस्त्र चुनाव का आधार है। स्पष्ट कीजिए।
  83. प्रश्न- बच्चों हेतु वस्त्रों का चुनाव किस प्रकार करेंगी?
  84. प्रश्न- गृह उपयोगी वस्त्रों के चुनाव में ध्यान रखने योग्य बातें बताइए।
  85. प्रश्न- फैशन एवं बजट किस प्रकार वस्त्रों के चयन को प्रभावित करते हैं? समझाइये |
  86. प्रश्न- लिनन को पहचानने के लिए किन्ही दो परीक्षणों का वर्णन कीजिए।
  87. प्रश्न- ड्रेपरी के कपड़े का चुनाव कैसे करेंगे? इसका चुनाव करते समय किन-किन बातों पर विशेष ध्यान दिया जाता है?
  88. प्रश्न- वस्त्रों की सुरक्षा एवं उनके रख-रखाव के बारे में विस्तार से वर्णन कीजिए।
  89. प्रश्न- वस्त्रों की धुलाई के सामान्य सिद्धान्त लिखिए। विभिन्न वस्त्रों को धोने की विधियाँ भी लिखिए।
  90. प्रश्न- दाग धब्बे कितने वर्ग के होते हैं? इन्हें छुड़ाने के सामान्य निर्देशों को बताइये।
  91. प्रश्न- निम्नलिखित दागों को आप किस प्रकार छुड़ायेंगी - पान, जंग, चाय के दाग, हल्दी का दाग, स्याही का दाग, चीनी के धब्बे, कीचड़ के दाग आदि।
  92. प्रश्न- ड्राई धुलाई से आप क्या समझते हैं? गीली तथा शुष्क धुलाई में अन्तर बताइये।
  93. प्रश्न- वस्त्रों को किस प्रकार से संचयित किया जाता है, विस्तार से समझाइए।
  94. प्रश्न- वस्त्रों को घर पर धोने से क्या लाभ हैं?
  95. प्रश्न- धुलाई की कितनी विधियाँ होती है?
  96. प्रश्न- चिकनाई दूर करने वाले पदार्थों की क्रिया विधि बताइये।
  97. प्रश्न- शुष्क धुलाई के लाभ व हानियाँ लिखिए।
  98. प्रश्न- शुष्क धुलाई में प्रयुक्त सामग्री व इसकी प्रयोग विधि को संक्षेप में समझाइये?
  99. प्रश्न- धुलाई में प्रयुक्त होने वाले सहायक रिएजेन्ट के नाम लिखिये।
  100. प्रश्न- वस्त्रों को स्वच्छता से संचित करने का क्या महत्व है?
  101. प्रश्न- वस्त्रों को स्वच्छता से संचयित करने की विधि बताए।

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